एक होता है छज्जे-छज्जे का प्यार
फिर आता है तीरथ (तीर्थ) वाला।
अंकही, अनसुनी सिर्फ़ नज़रों-नज़रों में।
कहना होता है बहुत कुछ,
लेकिन शुरुआत पता नहीं होती,
देखना होता है थोड़ी और देर,
फिर line आगे बढ़ जाती है।
हम जानते है वो हमें देख रही है,
छुप-छुप के ।
अब आप कहेंगे हमें कैसे पता,
क्यूँकि भई, हमारी नज़रें तो वहीं अटकी हैं।
अरे, ये क्या? उसने हमें उन्हें देखते पकड़ लिया
क्या बात, मुस्कुराहट वो भी ना रोक पायी
हम भी ना रोक पाए।
मंदिर की घंटी बजाने दोनो साथ आगे आए,
ताम्बे के स्पर्श के अलावा भी एक स्पर्श हुआ।
टं सी आवाज़ ने हमारी एक सेकंड वाली रोमांस को
मम्मी-पापा के नज़रों से बचा लिया।
फिर पता ना चला,
मंदिर परिसर में भटकते-भटकते कहीं लापता हो गयी वो।
ढूँढा होगा उसने भी हमें निकलने से पहले,
एक नज़र घुमाया होगा भोग की कतार में।
एक होता है छज्जे-छज्जे का प्यार
फिर आता है तीरथ वाला।
चलो, कोई बात नहीं।
फिर कभी सही।
अंजाम देंगे अपने इस तीरथ वाले प्यारको।
प्रेम है कई प्रकार के बाज़ार में
इशकदारों की कमी नहीं समाज में।
लेकिन,
तीरथ में भी होता है प्यार मेरे दोस्त, होता है।
सच्चा, सादा, innocent-वाला।
– क्षितिज चौधरी
(featured photo by Mayank Singh)