एक होता है छज्जे-छज्जे का प्यार फिर आता है तीरथ (तीर्थ) वाला। अंकही, अनसुनी सिर्फ़ नज़रों-नज़रों में। कहना होता है बहुत कुछ, लेकिन शुरुआत पता नहीं होती, देखना होता है थोड़ी और देर, फिर line आगे बढ़ जाती है। हम जानते है वो हमें देख रही है, छुप-छुप के । अब आप कहेंगे हमें कैसे…