हम फूल कहें तो प्यार समझ लेना,
इंक़लाब कहें तो बिहार समझ लेना |
बिहार एक क्रांति है। आज से नहीं सदियों से। लेकिन आज-कल ये क्रांति बहुत फीकी पड़ चुकी है। ना जाने हम किस ‘आज’ की होड़ में घुसे चले जा रहे की अपना कल मिटाते चले जा रहे। हाँ, थी ज़रूरत बिजली की, सड़कों की, गुंडा-रहित बाज़ारों की, लेकिन इतना तो कम-से-कम होना ही चाहिए था ना? हम आगे कैसे निकलेंगे? सिर्फ़ कुछ सड़के और नए मॉल्ज़ खुल जाने से हम विकसित कहला जाएँगे? वैसे भी, गगनचुंबि इमारतों और फ़्लाइओवर्स के दौड़ में भागे ही जा रहे, भागे ही जा रहे, लेकिन दौड़ रोक नहीं पा रहे। हाँ, प्रदूषण की रेस में अव्वल ज़रूर आ रहे।
सड़के तो बनती रहेंगी। हम क्या चाहते है? क्या चाहिए आपको? जिस ‘सोने की चिड़िया’ को पूरा भारत दुनिया को अपना बताता है, वो बिहार है आप। हमारा इतिहास, जिसे भारत अपनी विरासत बताता है, वो बिहार है आप।
सरकारें आएँगी सरकारें जाएँगी, लेकिन क्रांति रहनी चाहिए। ये बिहार रहना चाहिए।
– क्षितिज चौधरी
#BiharDiwas2020